सनातन सभ्यता धरती की सबसे प्राचीन संस्कृति मानी जाती है हजारों साल से चले आ रहे त्योहार पुरातन होने के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं त्योहारों का अभिनंदन पूजा पाठ से किया जाता है तथा इनको मनाने की कथाएं मौजूद हैं चाहे होलिका हो या दीवाली सबकी कहानियां आपको पौराणिक ग्रंथों में मिल जाएंगी।
जब सृष्टि की रचना हो चुकी थी तब से जुड़ा एक त्योहार है जो बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है जानते हैं Basant Panchami 2024 की पौराणिक कथाएं और Mata Sarasvati की पूजन आराधना तथा शुभ मुहूर्त के बारे में।
Basant Panchami बसन्त ऋतु (ऋतुओं का राजा)
पौराणिक काल से यह त्योहार बहुत ही महत्त्वपूर्ण है यह माघ महीने के पांचवें दिवस यानी पंचमी को मनाई जाती है और इसी दिन से बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है। बसंत पंचमी के ही दिन गुरु शिष्य पद्धति में सारे छात्र गुरुकुल पहुंचते थे यानी की माता पिता अपने बच्चों को उनके गुरु के पास इसी दिन सौंपा करते थे अर्थात यह दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए अत्यन्त सुखद माना जाता है।
हिन्दू संस्कृति में आज के दिन लोग गृह प्रवेश, या बच्चों का अन्नप्रासन(पसनी), व्यापार की शुरूवात, किसी धार्मिक कार्य का भूमि पूजन आदि कार्य किए जाते हैं। इस त्योहार का इतिहास माता सरस्वती से जुड़ा हुआ है इसलिए आज उन्ही की पूजा की जाती है इस दिवस को श्री पंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा(इतिहास)
हमारे ग्रंथों के अनुसार इस पृथ्वी का निर्माण त्रिलोक में विराजमान श्री ब्रह्मदेव ने किया है ऐसा माना जाता है कि जब ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि में मनुष्य योनि को लाया गया तब वह बहुत असंतुष्ट थे क्योंकि मनुष्य के पास भाषा और ज्ञान ही नही था। इस बात की असंतुष्टि की वजह से श्री ब्रह्म देव जगत पिता परमात्मा श्री हरि के पास गए और उनकी आज्ञा के अनुसार अपने कमंडल से जल लेकर भूलोक में छिड़क दिया उस पानी का प्रभाव ऐसा था कि समस्त धरती गुंजायमान होकर कंपित हो उठी और एक अद्भुत शक्ति का आगमन दैवीय रूप में होता है वही माता सरस्वती थीं।
देवी के चार हाथ जिनमें वीणा,पुस्तक सुशोभित हो रहे थे माता ने वीना का नाद आरंभ किया और परिणाम यह हुआ कि समस्त सृष्टि जीवंत हो उठी और मनुष्यों का वाणी का ज्ञान हुआ इसीलिए सरस्वती माता को वाणी की देवी भी कहा जाता है। वागीश्वरी, वीणावादिनी उनके अन्य नाम हैं श्री विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि बसंत पंचमी के दिन आराधना की जाएगी और यह दिन माता सरस्वती के जन्मोत्सव के हर्ष में मनाया जाएगा।
इसका महत्त्व रामायण काल से भी जुड़ा है प्रभु श्रीराम दंडका अरण्य में माता सीता की खोज में पहुंचे थे जहां पर भीलनी शबरी के बेर खाए थे वह दिन बसंत पंचमी का दिन था वर्तमान में यह स्थान गुजरात के डांग जिले में स्थित है।
बसन्त पंचमी 2024 मुहूर्त व सरस्वती पूजन विधि
साल 2024 में माघ महीने का पञ्च दिवस 14 फरवरी को पड़ रहा है ज्योतिषाचार्यो और पंचांगों के अनुसार 13 फरवरी की दोपहर 2 बजकर 41 मिनट से लेकर 14 फरवरी को 12 बजकर 09 मिनट के शुभ मुहूर्त में मनाया जाएगा इसीलिए 14 तारीख को ही माता पूजन विधि की जाएगी। सरस्वती पूजन विधि के लिए आवश्यक सामग्री में
- आम का मउर
- अक्षत
- पीले रंग की रोली
- चन्दन
- फूलों माला
- गुलाल
- और मिश्री वाली खीर से (भोग)
होनी चाहिए, इस दिन पीले वस्त्र पहनकर माता सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर को नहलाकर उनका श्रंगार कर हाथ जोड़कर आराधना करनी चाहिए। पूजा विधि समाप्ति के बाद "ॐ श्री महासरस्वत्यै नम:" का जाप कर हवन करना चाहिए।
हमारी संस्कृति में संपूर्ण बरस को षठ अर्थात 6 ऋतुओं में समाहित किया गया है बसंत, ग्रीष्म, बरसात, शरद, हेमंत और शिशिर इन सारे मौसमों में बसन्त ऋतुओं का राजा कहलाता है और ज्ञान व संगीत की देवी की आराधना से इसकी शुरूवात होती है इसीलिए संगीत क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए यह दिन अत्यंत खास है